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Showing posts from August, 2020

चौरचन । ( हम सब मिथिलावासी )

समस्त मिथिलावासी क " चौरचन"(चौठीचन्द्र) " हम सब मिथिलावासी " परिवार क तरफ सॅ हार्दिक शुभकामना । नम: सिंह प्रसेनमवधी: हिंसोजाम्बवता हत: सुकुमारक मारोदी तब व्येष स्यमंतक: अही मंत्र क संग भादव शुक्ल पक्ष चौठ तिथि क चन्द्र क प्रसाद अर्पण कएल जाइत अछि. वैदिक काले स’ मिथिलामे पाबनि-तिहारक पुनित परंपरा चलैत आबि रहल अछि. एहि पाबनि-तिहार स’ जुड़ल धार्मिक ओ ऐतिहासिक भावना सेहो महत्वपूर्ण होइत अछि, जे हमरा लोकनिमे सांस्कृतिक संचेतनाक संचारण त’ करबे करैत अछि संगहि नवपिढी लोक क सेहो अपन विशिष्ट पाबनि-तिहार स’ अवगत कराबैत अछि. एहने अतिविशिष्ट पाबनिक सूचीमे सहभागी अछि अलौकिक पाबनि “चौरचन”. चौरचनक इतिहास भादव शुक्ल-पक्ष चौठ तिथि क’ संपूर्ण मिथिलामे मनाबए जाए वला एहि पाबनिके मिथिला नरेश हेमांगद ठाकुर प्रचलित कएने छलाह. जे स्वंय ज्योतिषशास्त्रक ख्यातिप्राप्त ज्ञाता छलाह. कहल जाइत छैक जे हुनका अही तिथि क’ कोनो मनोवांछित कामना पूरा भेल छलैन तें ओ एहि पाबनि क प्रचार-प्रसार करबाओलनि. ओना मानल ईहो जाईत अछि जे द्वारिका वासके क्रममे अपना उपर लगाओल गेल कलंक स’ चिंतित भगवान कृष्ण, नारद जी स’

चौरचन केर कथा विस्तार

दव मासक शुक्ल पक्षक चतुर्थी (चौठ) तिथिमे साँझखन चौठचन्द्रक पूजा होइत अछि ,जकरा लोक चौरचन पाबनि सेहो कहै छथि। पुराणमे  प्रसिद्ध अछि, जे चन्द्रमा के अहि दिन कलंक लागल छलनि, ताहि कारण अहि समयमे चन्द्रमाक दर्शन के मनाही छैक। मान्यता अछि, जे एहि  समयक चन्द्रमाक दर्शन करबापर कलंक लगैत अछि। मिथिला में अकर निवारण हेतु रोहिणी सहित चतुर्थी चन्द्रक पूजा कायल जाइत अछि ! हिन्दू समाज मे श्री कृष्ण पूर्णावतार परम ब्रह्म परमेश्‍वर मानल गेल छथि । महर्षि पराशर हुनका चन्द्र सँ अवतीर्ण मानैत छथिन्ह । हुनके सँ सम्बन्धित स्कन्दपुराण मे चन्द्रोपाख्यान शीर्षक सँ कथा वर्णित अछि जे निम्नलिखित अछि । नन्दिकेश्‍वर सनत्कुमार सँ कहैत छथिन्ह हे सनत कुमार ! यदि अहाँ अपन शुभक कामना करैत छी तऽ एकाग्रचित सँ चन्द्रोपाख्यान सुनू । पुरुष होथि वा नारी ओ भाद्र शुक्ल चतुर्थीक चन्द्र पूजा करथि । ताहि सँ हुनका मिथ्या कलंक तथा सब प्रकार केँ विघ्नक नाश हेतैन्ह । सनत्कुमार पुछलिन्ह हे ऋषिवर ! ई व्रत कोना पृथ्वी पर आएल से कहु । नन्दकेश्‍वर बजलाह-ई व्रत सर्व प्रथम जगत केर नाथ श्री कृष्ण पृथ्वी पर कैलाह । सनत्कुमार केँ आश्‍चर्य भेलैन्

अयोध्या का इतिहास भाग --2

इस सबसे दुखी प्रधानमंत्री नेहरू ने गृह मंत्री सरदार पटेल को लखनऊ भेजा और मुख्यमंत्री पंत को कई पत्र लिखे. ज़रूरत पड़ने पर उन्होंने खुद भी अयोध्या जाने की बात कही. उस समय देश विभाजन के बाद के दंगों, मारकाट और आबादी की अदला-बदली से उबर ही रहा था और पाकिस्तान के हमले से कश्मीर के हालात भी नाज़ुक थे. पंत को लिखे पत्र में नेहरू ने चिंता प्रकट की कि अयोध्या में मस्जिद पर क़ब्ज़े की घटना का पूरे देश, विशेषकर कश्मीर पर बुरा असर पड़ेगा, जहाँ की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी ने भारत के साथ रहने का फ़ैसला किया था. क़रीब-क़रीब लाचार नेहरू ने कहा कि गृह राज्य होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में उनकी बात नहीं सुनी जा रही और स्थानीय कांग्रेस नेता सांप्रदायिक होते जा रहे हैं. फ़ैज़ाबाद में कांग्रेस के महामंत्री अक्षय ब्रह्मचारी इस घटना के विरोध में लंबे समय तक अनशन पर रहे और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गृह मंत्री लालबहादुर शास्त्री को ज्ञापन दिया. विधानसभा में भी मुद्दा उठा लेकिन सरकार ने एक लाइन का संक्षिप्त जवाब दिया कि मामला न्यायालय में है इसलिए ज़्यादा कुछ कहना उचित नहीं. सिविल मुक़दमे 16 जनवरी 1950 को गोपाल

अयोध्या का इतिहास और वर्तमान भाग --1

अयोध्या के रामकोट मुहल्ले में एक टीले पर लगभग पाँच सौ साल पहले वर्ष 1528 से 1530 में बनी मस्जिद पर लगे शिलालेख और सरकारी दस्तावेज़ों के मुताबिक़ यह मस्जिद हमलावर मुग़ल बादशाह बाबर के आदेश पर उसके गवर्नर मीर बाक़ी ने बनवाई. लेकिन इसका कोई रिकार्ड नहीं है कि बाबर अथवा मीर बाक़ी ने यह ज़मीन कैसे हासिल की और मस्जिद से पहले वहाँ क्या था? मस्जिद के रख-रखाव के लिए मुग़ल काल, नवाबी और फिर ब्रिटिश शासन में वक़्फ़ के ज़रिए एक निश्चित रक़म मिलती थी. ऐसा कहा-सुना जाता है कि इस मस्जिद को लेकर स्थानीय हिंदुओं और मुसलमानों में कई बार संघर्ष हुए. अनेक ब्रिटिश इतिहासकारों ने लिखा है कि 1855 में नवाबी शासन के दौरान मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद पर जमा होकर कुछ सौ मीटर दूर अयोध्या के सबसे प्रतिष्ठित हनुमानगढ़ी मंदिर पर क़ब्ज़े के लिए धावा बोला. उनका दावा था कि यह मंदिर एक मस्जिद तोड़कर बनायी गई थी. इस ख़ूनी संघर्ष में हिंदू वैरागियों ने हमलावरों को हनुमान गढ़ी से खदेड़ दिया जो भागकर बाबरी मस्जिद परिसर में छिपे मगर वहाँ भी तमाम मुस्लिम हमलावर क़त्ल कर दिए गए, जो वहीं कब्रिस्तान में दफ़न हुए. कई गजेटियर्स, विद

अयोध्या का संछिप्त इतिहास और राम मंदिर मे मैथिलौ का योगदान

अयोध्या भारत की विरासत, परंपरा, सांस्कृतिक इतिहास और धार्मिक मूल्यों में गहरे तक धंसा हुआ है। अयोध्या वीतरागी है। अयोध्या की कलकल बहती सरयू की धार में एक तरह की निसंगता है। भक्ति में डूबी अयोध्या का चरित्र अपने नायक की तरह ही धीर, शांत और निरपेक्ष है। आज आपको अयोध्या विवाद से जुड़े कुछ खास प्रसंगों से रूबरू करवाएंगे।  युद्ध का अर्थ हम सभी जानते हैं। योध्य का मतलब जिससे युद्ध किया जा सके। मनुष्य उसी से युद्ध करता है जिससे जीतने की संभावना रहती है। यानी अयोध्या के मायने हैं जिसे जीता न जा सके। आजाद भारत में अयोध्या को लेकर बेइंतहां बहसें हुईं। अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को जो कुछ हुआ वह किसी भी हिन्दू परंपरा में मान्य और प्रतिष्ठित नहीं हैं। पर वह हुआ क्यों? आज इस सवाल का जवाब भी टटोलने की कोशिश करेंगे। इस प्रश्न के जवाब के लिए हमें इतिहास की गहराई में उतरने की जरूरत है और पौराणिक तथ्यों से जुड़ी रिपोर्टस् को खंगालने की जरूरत है। जिसके लिए हमने अयोध्या से जुड़ी कुछ किताबें अयोध्या द डार्क नाइट और युद्ध में अयोध्या जैसी पुस्तकों के सहारे पूरी कहानी को समझने की कोशिश की और फिर सरल भाषा में