2. सिर्फ़ जेएनयू में ही एडमिशन की ऐसी पॉलिसी रही है जिसमें पिछड़े ज़िलों से आने वालों को इसके लिए अतिरिक्त नंबर दिए जाते हैं. मसलन, आप उड़ीसा के कालाहांडी ज़िले से हैं तो आपको पांच नंबर मिलेंगे क्योंकि वो इलाक़ा पिछड़ा है.
3. जेएनयू में ये कोशिश की जाती है कि भारत के सभी राज्यों से छात्र पढ़ने आ सकें हालांकि बिहार और उड़ीसा जैसे पिछड़े राज्यों के छात्र-छात्राओं की संख्या अधिक होती है.
4. जेएनयू संभवत पूरे भारत में सोशल साइंस के मल्टी डिसीप्लिनरी रिसर्च का एकमात्र संस्थान है.
5. यूनिवर्सिटी में अनेक विदेशी भाषाएं पढ़ाई जाती हैं, अंडर ग्रैजुएट कोर्स सिर्फ़ विदेशी भाषाओं में होते हैं, बाक़ी सारे कोर्स मास्टर्स से शुरू होते हैं.
अब जेएनयू के मूल्य...
इन पर लंबी बहस की संभावना है. खास कर कन्हैया, उमर खालिद मामले के बाद.
अयोध्या के रामकोट मुहल्ले में एक टीले पर लगभग पाँच सौ साल पहले वर्ष 1528 से 1530 में बनी मस्जिद पर लगे शिलालेख और सरकारी दस्तावेज़ों के मुताबिक़ यह मस्जिद हमलावर मुग़ल बादशाह बाबर के आदेश पर उसके गवर्नर मीर बाक़ी ने बनवाई. लेकिन इसका कोई रिकार्ड नहीं है कि बाबर अथवा मीर बाक़ी ने यह ज़मीन कैसे हासिल की और मस्जिद से पहले वहाँ क्या था? मस्जिद के रख-रखाव के लिए मुग़ल काल, नवाबी और फिर ब्रिटिश शासन में वक़्फ़ के ज़रिए एक निश्चित रक़म मिलती थी. ऐसा कहा-सुना जाता है कि इस मस्जिद को लेकर स्थानीय हिंदुओं और मुसलमानों में कई बार संघर्ष हुए. अनेक ब्रिटिश इतिहासकारों ने लिखा है कि 1855 में नवाबी शासन के दौरान मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद पर जमा होकर कुछ सौ मीटर दूर अयोध्या के सबसे प्रतिष्ठित हनुमानगढ़ी मंदिर पर क़ब्ज़े के लिए धावा बोला. उनका दावा था कि यह मंदिर एक मस्जिद तोड़कर बनायी गई थी. इस ख़ूनी संघर्ष में हिंदू वैरागियों ने हमलावरों को हनुमान गढ़ी से खदेड़ दिया जो भागकर बाबरी मस्जिद परिसर में छिपे मगर वहाँ भी तमाम मुस्लिम हमलावर क़त्ल कर दिए गए, जो वहीं कब्रिस्तान में दफ़न हुए. कई गजेटियर्स, विद
इस सबसे दुखी प्रधानमंत्री नेहरू ने गृह मंत्री सरदार पटेल को लखनऊ भेजा और मुख्यमंत्री पंत को कई पत्र लिखे. ज़रूरत पड़ने पर उन्होंने खुद भी अयोध्या जाने की बात कही. उस समय देश विभाजन के बाद के दंगों, मारकाट और आबादी की अदला-बदली से उबर ही रहा था और पाकिस्तान के हमले से कश्मीर के हालात भी नाज़ुक थे. पंत को लिखे पत्र में नेहरू ने चिंता प्रकट की कि अयोध्या में मस्जिद पर क़ब्ज़े की घटना का पूरे देश, विशेषकर कश्मीर पर बुरा असर पड़ेगा, जहाँ की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी ने भारत के साथ रहने का फ़ैसला किया था. क़रीब-क़रीब लाचार नेहरू ने कहा कि गृह राज्य होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में उनकी बात नहीं सुनी जा रही और स्थानीय कांग्रेस नेता सांप्रदायिक होते जा रहे हैं. फ़ैज़ाबाद में कांग्रेस के महामंत्री अक्षय ब्रह्मचारी इस घटना के विरोध में लंबे समय तक अनशन पर रहे और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गृह मंत्री लालबहादुर शास्त्री को ज्ञापन दिया. विधानसभा में भी मुद्दा उठा लेकिन सरकार ने एक लाइन का संक्षिप्त जवाब दिया कि मामला न्यायालय में है इसलिए ज़्यादा कुछ कहना उचित नहीं. सिविल मुक़दमे 16 जनवरी 1950 को गोपाल
जम्मू-कश्मीर के गलवान घाटी (Galwan Valley) पोस्ट पर तैनात जयनगर थाना क्षेत्र के कोरहिया गांव निवासी इंडियन आर्मी बिहार रेजिमेंट के जूनियर कमांडिंग आफिसर 39 वर्षीय हेम शंकर प्रसाद, पिता राम चन्द्र साह देश के खातिर शहीद हो गए. स्व. प्रसाद के भाई हरि शंकर साह ने बताया कि मेरा भाई देश की सुरक्षा को लेकर जम्मू-कश्मीर के गलवान घाटी पोस्ट पर तैनात था. बीते एक जनवरी को परिजनों से मोबाइल पर संपर्क हुआ. लेकिन तीन जनवरी को आर्मी हेड क्वाटर से सूचना आयी कि आर्मी आफिसर की तबीयत अचानक खराब हो गई है. लेकिन घने कोहरे और कङाके की ठंड के कारण पोस्ट तक हेलीकॉप्टर नहीं पहुंच सका. मौसम ठीक होने पर हेलीकॉप्टर के माध्यम से ईलाज के लिए आर्मी हेडक्वार्टर ले जाया गया. बुधवार को आर्मी हेड क्वाटर से सूचना आई की कमांडिंग आफिसर की मृत्यु हो गई है. आर्मी आफिसर के नहीं रहने पर पूरा गांव में मातम छा गया है. गांव में पसरा सन्नाटा- जवान के शहादत की खबर जैसे ही गांव के लोगों के हुई पूरे गांव में सन्नाटा पसर गया. वहीं आस पास के गांव के लोगों मे भी इस घटना से मातमी सन्नाटा पसरा है. गांव के लोग स्व. प्रसाद को प्
बहुत अच्छा। दस्ता ऐं जे ऐन यू की
ReplyDeleteU right
ReplyDelete